...तुम्हारे लिए... सिर्फ एक पल
मेरे लिए... एक ज़िन्दगी...
...जितने पल तुमने मेरे साथ गुज़ारे हैं
उतनी ज़िंदगियाँ मैंने जीं हैं...
...न जाने कितनी बार मैंने जन्म लिया
न जाने कितनी बार मैं मरी हूँ...
...पिछली बार जब तुम गए थे
वो आखरी बार था जब मैं मरी थी...
...उस दिन के बाद न तुम लौटे
न मैं जिंदा हुई...
...एक जिस्म है जो साँसे ले रहा है
राख़ होने का इंतज़ार कर रहा है...
"ना लौटा सकोगे कभी चाहत मेरी..
ReplyDeleteना मिटा सकोगे कभी इबादत मेरी..
...अक्स हूँ जुदा हो जाऊं..मुमकिन नहीं..!!"
...
bahut hi sundar abhivyakti ..
ReplyDeletekavita me ek kasak hai ji ..
badhayi
vijay
pls read my new poem on poemsofvijay.blogspot.com
Super Duper Like..I am in love with your poetry
ReplyDeleteवाह-वाह क्या बात है, भावमयी प्रस्तुति बढिया लगी ।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति है.
ReplyDelete....उस दिन के बाद न तुम लौटे
न मैं ज़िंदा हुई....
आपकी कलम को ढेरों शुभ कामनाएं .
मीना कुमारी जी की तस्वीर देखकर लगता है जैसे आपने यह कविता उनके लिए ही लिखी हो .उनका जीवन भी आप की इस कविता के जैसा था.
Gazab kee rachana hai!
ReplyDeleteओह! क्षितिज़ा गज़ब कर दिया…………कितना दर्द और कसक भर दी है चंद लफ़्ज़ों मे ही…………बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं सारगर्भित अभिव्यक्ति
ReplyDeleteशुभकामनाये
शब्द नहीं क्षितिजा जी! तारीफ़ के लिए.
ReplyDeleteबहुत ही दर्द भरी और दिल को छू जाने वाली पंक्तियाँ लिखी हैं आपने.
सादर
क्षितिजा जी
ReplyDeleteसादर प्रणाम
कविता बहुत मार्मिक भाव को अभिव्यक्त करती है ....आपका लिखने का अंदाज बहुत जुदा है ....शक्रिया
क्षितिजा जी
ReplyDeleteइसे भी संयोग ही कहें कि आज मैंने भी कुछ इसी तरह कि कविता लिखी है ... "जिन्दगी है एक दिन " .....आपका स्वागत है ....आशा है आप अपनी टिप्पणी से अनुग्रहित करेंगी ....शुक्रिया आपका
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता लिखी है
ReplyDeleteऐसे भाव, कि सीधे मन मे उतर गये
ढेर सारी बधाई स्वीकार करें
बहुत खूब
ReplyDeleteदर्द भरी और दिल को छू जाने वाली पंक्तियाँ लिखी हैं
कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग//shiva12877.blogspot.com पर भी अपनी एक नज़र डालें
गहन भावों को संजोये हुए नारी मन की व्यथा का सटीक चित्रण किया है .सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteek behtareen rachna...jo bahut marmik hai..:)
ReplyDeleteek nivedan: mera blog jindagikeerahen.blgospot.com pata nahi kahan gumm hoga, agar aap iske revive ke liye koi suggestion de sakte hain, to bahut kripa hogi..!!
कितना दर्द और कसक ....बहुत मार्मिक और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..बहुत खूब..
ReplyDelete@ mukesh kumar sinha ji
ReplyDeletemaaf kijiye mujhe iske baare mein koi jaankari nahi hai ... aap kisis visheshagya se salaah le lijiye ... dhanyawaad
क्षितिजा जी
ReplyDeleteबहुत ही दर्द भरी और दिल को छू जाने वाली पंक्तियाँ लिखी हैं आपने.
ओह, मार्मिक पंक्तियां हैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने।
एक जिस्म है जो सांसे ले रहा है, राख होने का इंतजार कर रहा है
ReplyDeleteबहुत ही बहुत बढ़िया !
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार 29.01.2011 को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteआपका नया चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
This is my first visit to your blog and am impressed with the feelings and expressions.
ReplyDeleteदर्द को समेटे खूबसूरत रचना ..
ReplyDeleteएक साधारण सा नियम है, wala app ki writing atchhi lagi nice
ReplyDeleteतुम्हारे पल पल में बसी मेरी जिन्दगियाँ। बहुत ही सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत सुंदर .... मन के मर्म की प्रभावी अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteZindagi ka palon men tut kar bikhar jaane ka bahut hi gahara dard ukera hai aapne.
ReplyDeleteSundar abhivyakti ke kiye shukriya
एक पुरानी ग़ज़ल के चाँद लाइन याद आ गयी...
ReplyDelete"वक्त सारी जिन्दगी में दो ही गुजरे हैं कठिन
एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद."
बहुत अच्छा लिखा
xitija ji bahut sundar bhavon se saji kavita ke liye aapko badhai aur shubhkamnayen
ReplyDeleteawww.....very very touching.....luv u yaara
ReplyDeletepriya akanksha ji
ReplyDeletenamskar ,
rachna ka samveg samvedanshilata ki gaharayiyon
ko chhuta hua . bhavmayi prastuti .badhayian.
priya kshitija ji,
ReplyDeletemafi chahata hun ,sambodhan men kshitija
ki jagah ,akanksha likh gaya .kshitija pada jaye .
पिछली बार जब तुम गए थे तब आखिरी बार मरी थी मैं... बेहतरीन भावाभिव्यक्ति। रचना में दर्द है, मर्म है और है प्यार की इंतहा।
ReplyDeleteएक जिस्म है जो सांसें ले रहा है,
ReplyDeleteराख होने का इन्तज़ार कर रहा है।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई।
bahut khoob likha aapane
ReplyDeleteइस बार आपकी कविता का रूमानी पक्ष उभर कर सामने आया है.
ReplyDeletePhoto is matching with the thoughts hidden therein.
क्षितिजा जी , बहुत ही गहरे जज्बात के साथ दिल को छू लेने वाली प्रस्तुति....... सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteक्षितिजा जी,
ReplyDeleteसुभानाल्लाह......बहुत गहरे कहीं चोट कर दी है आपने......मीना कुमारी जी की ये तस्वीर आपकी पोस्ट में चार कहंद लगा रही है.......बहुत ही खुबसूरत पोस्ट.....बधाई आपको|
भावपूर्ण....
ReplyDeleteक्षितिजा जी ऐसा क्यों होता है कि आपकी कवितायें एक केयर सालीसिटिंग रिस्पांस उद्भूत कर देती है -बहत गहन भावनाओं और वियोग श्रृंगार से आप्लावित ..यह कविता भी पाठकों को कविमन से सानिध्यता को आमंत्रित करती है!
ReplyDeleteकुछ गलत तो नहीं कहा ?:)
kahee hui baat hai par dobara sunna accha laga ...gud one... :)
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना....भाव,प्यार और उसका दर्द....बहुत खूब
ReplyDeleteसिर्फ़ यही तो नही है नारी जीवन का सच......उत्तिष्ठ कोन्तेय....
ReplyDeleteवाह क्या बात है..
ReplyDeleteबेहतरीन भावाभिव्यक्ति...
सुन्दर प्रयास.
ReplyDeleteफालोवर्स आपके हमसफर हैं उनके लिये वहां 'सहायक' का प्रयोग मुझे उचित प्रतीत नहीं होता, आप कविता लिखती हैं, आपके पास तो शव्द भंडार है। शव्दों से ही तो भाव, बिम्ब और आपकी निजी शैली से परिपूर्ण अक्षर कविता की सीढि़यों में पांव धरती है।
"ये पल ऐसे ही होते हैं....
ReplyDeleteकोई किसी के होने से मरता है,
कोई किसी के ना होने से.."
बहुत सुंदर प्रस्तुति क्षितिजा जी.
...पिछली बार जब तुम गए थे
ReplyDeleteवो आखरी बार था जब मैं मरी थी...
...उस दिन के बाद न तुम लौटे
न मैं जिंदा हुई...
dar sa gaya mai padhkar ise.... shabd nahi tarif ke liye.
kya kahu , ye soch rahi hun
ReplyDeletebahut hi dil k karib lagi
aap kanpur mi hai ye jan kar achchha laga
kabhi milne kaa program banaiye
प्रेम के अनन्य पल मन के किसी कोने रच- बस जाते हैं।भावपूर्ण पोस्ट।
ReplyDeletesirf ek pal... kaafi hai... mujhey jinda rakhney key liye...
ReplyDeleteBehad khoobsurat rachna...
Thanks for sharing :)
क्या बात है !
ReplyDeleteगहरी नज़्म है ... जिंदगी के कई पन्नों को उकेर कर लिखी गयी नज़्म ...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब अभिव्यक्ति है क्षितिजा जी ...
भावनाओ का खुबसुरत चित्रण। कभी वक्त मिले तो हमारे ब्लाग पर भी पधारे। शुक्रिया।
ReplyDeletebeautiful poem.....
ReplyDeleteदेरी से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हू. सारा दर्द उंडेल दिया है कविता में... दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
sunder aur bhavpurn rachna k liye badhai sweekar karein .....
ReplyDeleteआदरणीयाxitija ji बसंत पर आपको हार्दिक शुभकामनायें |
ReplyDeleteआपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
hellooooooooooooooooooooooooooooo...............
ReplyDeletekahan ho yaara....missing u....jaldi aao aur kuch likho..................
क्षितिजा जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
पिछली बार जब तुम गए थे …
संवेदना स्वयं साक्षात् सम्मुख प्रतीत हो रही है … साधु !
बहुत तबीअत से लिखती हैं आप !
बसंत पंचमी सहित बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
मन के मर्म की प्रभावी अभिव्यक्ति|आभार|
ReplyDeleteAnubhuti ki parakashtha ki or le jati kavita.
ReplyDelete---------
अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्वास:महिलाएं बदनाम क्यों हैं?
कितना आसान है तारीफ करना और कितना मुश्किल है दर्द को शब्द देना !
ReplyDeleteब्लॉग लेखन को एक बर्ष पूर्ण, धन्यवाद देता हूँ समस्त ब्लोगर्स साथियों को ......>>> संजय कुमार
ReplyDeleteक्षितिजा जी, कितनी दर्दभरी कविता है । तुम्हारे लिये एक पल मेरे लिये इक जिंदगी । स्त्री के जीवन का दर्शन कह जाती हैं ये पंक्तियां ।
ReplyDeleteप्रिय क्षितिजा जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
बहुत दिन हो गए , पोस्ट बदले हुए …
कहीं ब्लॉग पर भ्रमण-विचरण करते भी मुलाकात नहीं हुई …
सब कुशल मंगल तो है ?
आशा है, सपरिवार स्वस्थ-सानन्द हैं !
नई पोस्ट बदलें तो कृपया, मेल द्वारा सूचित करने का कष्ट करें …
♥ बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
दर्द भरे एहसास बयाँ करती रचना |
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना |
exceelent creation
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.. चंद पंक्तियों में बहुत कुछ कह दिया.........
ReplyDeleteरंगपर्व होली पर आपको व आपके परिवार को असीम शुभकामनायें......
बहुत खूब सुन्दर पोस्ट के लिए
ReplyDeleteबधाई ......
जितने पल तुमने मेरे साथ गुज़ारे हैं
ReplyDeleteउतनी ज़िंदगियाँ मैंने जीं हैं..
un jiye har pal ko kaleje se lagaaye man hi man dohraate .. budbudaati ladki ...prem ko maan dena hi ibadat hai ... yahi paegaam deti sundar rachna ..
shreshtha lekhan hetu bahut badhaai !!
Hi
ReplyDeleteThis is too good
This is a fantastic write though i am not great with hindi. you write really well.
ReplyDeletemarmik prastuti........dard jab shabdo me badal jaate hai to har dil ko chute hai
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने।
ReplyDeleteअति सुंदर
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